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Showing posts from January, 2018

अहसास

 अहसास राजू आज बहुत खुश था। उसका 12वीं का रिजल्‍ट आया था और उसे प्रथम आने पर उसके पापा ने नई बाइक लेकर दी थी। वह बाइक से कालोनी के कई चक्‍कर काट चुका था। युवा मन में हर्ष की तरंगे उठ रही थी। शाम को उसके दोस्‍तों को उसने पार्टी के लिए भी बुला रखा था। इसके लिए उसकी मम्‍मी ने उसे दो हजार रुपए भी दिए थे। सायं को उसके सभी साथी घर पर आ गए और छत वाले कमरे पर सभी साथियों के साथ उसने पार्टी की। अगले रोज वह सुबह मार्केट में सामान लेने गया था कि रास्‍ते में उसके दोस्‍त संजय का घर पडता था, उसे प्‍यास लगी थी तो वह अपने साथी संजय के यहां चला गया। वहां उसने देखा कि उसका साथी प्रेक्टिकल बना रहा था। उसने पूछा कि क्‍या कर रहा है, तो उसने कहा यार, कुठ साइंस स्‍टूडेंट के प्रेक्टिकल की जिम्‍मेदारी ले रखी है, दो हजार रुपए मिल जाएंगे। राजू ने संजय से पूछा- यार अंकल कमा तो रहे हैं, फिर तुम अभी से इतना चिंतित क्‍यों हो। संजय ने कहा, यार- मेरे पिता अकेले ही कमाने वाले हैं, उनको तो इस बात का पता भी नहीं कि मैने यह काम लिया है, लेकिन अभी मेरा और सोनिया का अगली कक्षा में ए‍डमिशन होना है, उसमें काफी खर्चा आ...

संस्‍कार और मानवता

मानवता   बच्‍चों में संस्‍कार कैसे विकसित करें, इस बात की स्‍कूल में रोजाना चर्चा हाेने लगी। असेम्‍बली में तो हर रोज इस बात पर जोर दिया जाने लगा कि बच्‍चों को अच्‍छे व्‍यवहार की ओर कैसे अग्रसर करें। नौंवी  में पढने वाले राजेश के मन में रोज ये बात आती कि ये संस्‍कार आखिर होते क्‍या हैं, उसने इस बारे में हिंदी के अध्‍यापक राजकिश्‍ाोर से बात की तो उन्‍होंने बताया, बेटा संस्‍कार से मतलब अच्‍छे व्‍यवहार के साथ बडों का आदर, छोटों को प्‍यार और मानवता का संचार होना है। इस बारे में मैं आज कक्षा में बताउंगा। चौथे पीरियड में हिंदी की कक्षा थी। बच्‍चे अध्‍यापक का इंतजार कर रहे थे कि आज कुछ नया जानने को मिलेगा। राजकिशोर ने कक्षा में आने के बाद कहा, आज मैं तुम्‍हें एक कहानी सुनाता हूं। उसने कहा- एक बदमाश था, उसका नाम टोनी था। वह रोज चोरी करता, उल्‍टे काम करता। और इसी प्रकार की उसकी संगति भी बनी हुई थी। उसके सभी साथी भी चोर थे। एक बार वह रात  को  किसी मकान में सेंध लगाने के लिए जा रहा था  कि रास्‍ते में उसे एक युवक मिला। युवक की बाइक  खराब हो गई थी और वह उसे खींचक...

परोपकार

 परोपकार एक बार दसवीं कक्षा में पढने वाले तीन दोस्‍त मेले में जा रहे थे। कच्‍चे और सुनसान रास्‍ते से होकर उन्‍हें बाबा भोलनाथ के मंदिर तक जाना था। रास्‍ता संकरा और खेतों से होकर गुजरने वाला था, इसलिए कोई सवारी या वाहन उपलब्‍ध नहीं था। तीनों किशोर आपस में हंसी मजाक करते जा रहे थे । अभी वे आधी दूर ही पहुंचे थे कि उन्‍हें सामने से एक बुढिया आती दिखाई दी। वह कमजोरी से कांप रही थी, जो उनके रास्‍ते में गिर गई। किशोर बच्‍चों ने उसे उठाकर बिठाया और सामने वाले कुंए से लाकर पानी पिलाया। कुछ ही देर में बुढिया को होश आ गया, तो उसने इशारों ही इशारों में उनसे कुछ खाने को मांगा। उन तीनों के पास पोटली में अलग अलग रोटियां थीं। उनमें से एक ने अपनी रोटी बुढिया को दे दी, लेकिन उनसे उसका पूरा पेट नहीं भरा तो अन्‍य दो ने भी बारी बारी करके अपनी अपनी रोटियां उसे दे दीं। उसके बाद बुढिया उन्‍हें आशीष देती रही और वे उसे वहां बैठी छोडकर आगे बढ गए। लेकिन अब तीनों ही लडकों को चिंता थी कि मेले तक जाने और आने में तो शाम हो जाएगी, ऐसे में भूख लगेगी तो क्‍या होगा। वे किसी तरह मेले में पहुंच गए, वहां जाकर उन्‍हो...