अहसास

 अहसास

राजू आज बहुत खुश था। उसका 12वीं का रिजल्‍ट आया था और उसे प्रथम आने पर उसके पापा ने नई बाइक लेकर दी थी। वह बाइक से कालोनी के कई चक्‍कर काट चुका था। युवा मन में हर्ष की तरंगे उठ रही थी। शाम को उसके दोस्‍तों को उसने पार्टी के लिए भी बुला रखा था। इसके लिए उसकी मम्‍मी ने उसे दो हजार रुपए भी दिए थे। सायं को उसके सभी साथी घर पर आ गए और छत वाले कमरे पर सभी साथियों के साथ उसने पार्टी की। अगले रोज वह सुबह मार्केट में सामान लेने गया था कि रास्‍ते में उसके दोस्‍त संजय का घर पडता था, उसे प्‍यास लगी थी तो वह अपने साथी संजय के यहां चला गया। वहां उसने देखा कि उसका साथी प्रेक्टिकल बना रहा था। उसने पूछा कि क्‍या कर रहा है, तो उसने कहा यार, कुठ साइंस स्‍टूडेंट के प्रेक्टिकल की जिम्‍मेदारी ले रखी है, दो हजार रुपए मिल जाएंगे। राजू ने संजय से पूछा- यार अंकल कमा तो रहे हैं, फिर तुम अभी से इतना चिंतित क्‍यों हो। संजय ने कहा, यार- मेरे पिता अकेले ही कमाने वाले हैं, उनको तो इस बात का पता भी नहीं कि मैने यह काम लिया है, लेकिन अभी मेरा और सोनिया का अगली कक्षा में ए‍डमिशन होना है, उसमें काफी खर्चा आएगा। मैं चाहता हूं कि कम से कम मेरी किताबों और अन्‍य जरूरतों को तो पूरा कर सकूंगा।राजू ने उसकी बातें बडे ध्‍यान से सुनीं और वह सोचने लगा कि उसके पापा भी तो अकेले ही कमाने वाले हैं और घर की पूरी जिम्‍मेदारी भी उठा रहे हैं, लेकिन उसके मन में ऐसा खयाल कभी नहीं आया। वह तो बल्कि फिजूलखर्ची भी कर ही देता है। उसने कभी ऐसा नहीं सोचा।
उस दिन के बाद उसने तय किया कि वह कम से कम फिजूलखर्ची नहीं करेगा।

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